रोज़ बरोज़ मै ये सपन देखू कश्मीर से कन्याकुमारी तक ,
तिरंगे से सजा वतन देखू !
फक्र मराठी ,गुजराती होने का देखा ,
अब हर एक में सिर्फ हिन्दोस्तानी जहन देखू !
सरहद से बुलावा आ जाए तब ,
हर नौजवान के सर पे बंधा कफ़न देखू !
सीता ,सावित्री बसती यहाँ , रानी झाँसी की शक्ल में अब ,
भारत की हर माँ -बहन देखू !
सोने की चिड़िया भले ना बने भारत ,
पर और ना रूपए का अब पतन देखू !
हर एक को भरा पेट ,ढका बदन देखू ,,
हँसता खिलखिलाता वतन का बचपन देखू !
अब तो हर पल बस यही सपन देखू ,
दुश्मनों का मिटता नामोनिशान देखू !
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान देखू !
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