
कुछ तो जीते हैं जन्नत की तमन्ना ले कर
कुछ को तम्मनायें जीना सिखा देतीं हैं
हम किस तमन्ना के सहारे जियें
ये ज़िन्दगी हर रोज़ एक तमन्ना बङा देती है
एक गर दामन छोड दे
तो दूसरी साथ हो लेती है
इन का मिज़ाज है कुछ ऐसा
मिट्टी होने तक साये की तरह चलती है
आगे बड़ने की ताक़त अदा कर जाती हैं
तो चैन-ओ-सुकून कभी हथिया लेतीं हैं
दिल से निकलतीं हैं,रूह को ले चलती हैं
कभी इन्सान तो कभी हैवान बना देतीं हैं
कोई पूछे गर कि क्या
ताक़त मिली तमन्नओं को कुदरत से
तो जवाब यह है कि
इन्ही के दम पर तो दुनिया चलती है
तमन्नओं से इन्सान का ताल्लुक कुछ
इस कदर जुड़ा है
कि मिस्त्र की जमीं पर
पिरामिड खड़ा है
मृग तृष्णा की तरह होती है तमन्ना
दिखती है, ललचाती है, हमेशा
दो कदम आगे खड़ी होती है तमन्ना
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