
सत्य पथ का मुसाफिर
कोई पथ जाती है धन को,
कोई सुख साधन को,
और कोई प्रेमिका के
मधुर चितवन को।
पर छोड़ ये सारे सुलभ पथ को
तूने चुना है सत्य को
नमन है तेरे त्याग और तप को।
पग-पग है संग्राम जिस पथ का,
मापदंड साहस जिस पथ का ,इंतिहान तप,तेज और बल का,
तू मुसाफिर सत्य के अनवरत पथ का।
दीप बुझ जाने पर वो स्थान पा नहीं सकता,
पुष्प मुरझाने पर पूजा योग्य कहला नहीं सकता,
लौटने पर ओ मुसाफिर, तू विजय ध्वजा लहरा नहीं सकता।
सम्मान है चलना तेरा, दीपक सामान जलना तेरा,
संसार तेरा जयगान करे ,फूलों, हारों ,रोड़ी ,चन्दन से पग-पग पर सत्कार करें।
पर लौट अगर तू आएगा,अपना सर्वश लुटायेगा,
कोई ना पूछेगा तुझसे तूने कितने तप, त्याग किये,
तूने कितने अंगार सहे,बाधाओं के ज्वार सहे,
होम कर अपने बदन का तूने कब तक प्रकाश दियें।
पग-पग है संग्राम जिस पथ का,
तू मुसाफिर सत्य के अनवरत पथ का.....
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कुमार विमल
दिल्ली प्रोद्योगिकी विश्विद्यालय, दिल्ली
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