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ऑफिस कार से नहीं जायेंगे कुमार विमल
आज ज्यादातर लोग अंधाधुन दौड़ रहे है, कोई पैसो के पीछे, कोई नारी के पीछे, कोई पद और प्रतिष्ठा के पीछे, उनके लिए यह भागदौड़ ही जीवन है। भागदौड़ ही आधुनिक जीवन शैली की पहचान बन बैठी है। ना जाने क्यों लोग सबसे आगे निकल जाना चाहते है, ना जाने क्यों वे अपने आगे पैसो और भव्यता की दिवार खड़ा कर देना चाहते है। इन चाहतो ने समाज में अनावश्यक प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न कर दी है। हर कोई अपने आप को ऊँचा दिखाना चाहता है , ज्यादा सुविधा और विलाशता आधुनिक मानव का लक्ष्य बन बैठा है। जहाँ कभी व्यक्ति का चरित्र उसकी पहचान हुआ करती थी वहीं आज बैंक बैलेंस , गाँड़िया, बंगला इत्यादि से लोग पहचाने जा रहे हैं।
महँगी गाड़ियाँ कुछ हद तक जरुरत है लेकिन ज्यादातर समाज में अपनी हैसियत का प्रकटीकरण। दहेज में मिली कार तो समाज में काबिलियत की एक मापदंड बन गई है। रोहित बाबु भी इस चाहत से अछूते ना थे। वे एक नामी मल्टीनेशनल कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे , लाखों में कमाई थी। हाल ही में उनकी शादी हुई है। उनहे भी शादी में एक महँगी कार मिली है। कर के पक्ष में पिता के अपने तर्क थे ,आखिर मिले भी क्यों ना लड़के की पढ़ाई में खर्च किया है , लड़का लाखो कमाता है इत्यादि। रोहित बाबु बड़े गर्वे से इस कार को दोस्तों को दिखाते और वाह -वाही लुटते। पत्नी के संग लॉन्ग ड्राइव पर निकलते , कभी दूर किसी रेस्टोरेंट में खाने जाते। नई कार में नई पत्नी संग घुम कर गर्वान्वित होते। टैक्सी या बस में सफर करना अपने शान के खिलाफ समझते। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो जब पिता को पुत्र के साथ लॉन्ग ड्राइव के आनंद का अनुभव प्राप्त हुआ हो फिर भी पिता को पुत्र के मिले कार पर गर्व था, उनके लिए तो यह कार अपने बेटे की योग्यता का प्रतीक था।
शहर में गाड़ियां बढ़ती जा रही है , सड़को पर चलना दुर्भर है , ट्रैफिक जाम आम है , हर तरफ धूल ही धूल है , शुद्ध हवा भी नसीब नहीं है , लेकिन गाड़ियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। सरकार परेशान , क्या करे , सारे प्रयास असफल। काफी विचार विमर्श के उपरांत सरकार ने घोषणा किया 'एक जनवरी से सम -विषम योजना लागु होगी ' अथार्थ सम तारीख को सम नंबर की गाड़िया और विषम तारीख को विषम नंबर की गाड़िया। लोगो में मिली जुली प्रतिक्रिया थी
कल ही एक जनवरी है , कल ही योजना का पहला दिन है कितने ही लोगो के लिए यह एक इंतिहान से कम न है। रोहित बाबु परेशान जैसे किसी ने उनकी नई -नवेली कार पर ग्रहण लगा दिया हो। आज यही सोचते हुए ऑफिस जा रहे थे कल जब बस से ऑफिस जाऊंगा तो उनकी प्रतिष्ठा का क्या होगा। उनकी सारी साख खाक हो जाएगी, उनमे और आम आदमी में क्या अंतर रह जायेगा ! आज काम करने में भी जी ना लग रहा था, मित्रो के संग odd-even पर चर्चा करते और सरकार को कोसते।
काम करने में जी ना लगा तो आज जल्दी घर लौट आये, घर का मौहोल आज कुछ बदला सा है घर में चिंतन शिविर सा लगा हो, रोहित बाबु कल कैसे ऑफिस जायेंगे इस विषय पर चर्चा चल रही है। शादी के बाद आज पहली बार माता, पिता और बहु साथ बाते कर रहे थे, और रोज शोर करने वाली टेलीविज़न खामोश थी। माँ कि ममता बोल रही थी और कितने दिनों के बाद बेटा ऑफिस से आने के उपरांत रेस्टोरेंट या लॉन्ग ड्राइव पर न जाकर ख़ामोशी से सुन रहा था। काफी विचार -विमर्श के बाद कल की कार्ययोजना निर्धारित हुई।
सूरज निकलने से पहले ही माँ ने बहु को आवाज दिया, सास की आवाज सुनते ही बहु ने बिस्तर छोड़ दी , रोहित बाबु भी आज सुबह ही जाग गए , आज कामवाली का इंतजार न हुआ। माँ और सास ने मिलकर किचेन को संभाला तो पिता दुध लेन बाजार गए, पत्नी ने आज अपने हाथो से उन्हें खाना परोसा, माँ और पत्नी के प्यार ने खाने को और भी स्वादिष्ठ बना दिया था। रोहित बाबु नियत समय पर ऑफिस के लिए निकले पहली बार आज पत्नी में एक देवी सा आभास हुआ। समय पर ऑफिस पहुँच कर उन्होंने पत्नी को कॉल किया जैसे कोई समर जीत गए हों। " माँ, वों समय पर ऑफिस पहुंच गए" बहु ने हर्षपूर्वक सास को बताया। वर्षो पहले जो खुशी रोहित को समय पर स्कूल भेजने में होती थी आज वही ख़ुशी माँ को फिर से हुई।
चार बजे के लगभग पत्नी ने उन्हें कॉल किया। अक्सर इस समय पत्नी उन्हें कॉल कर शाम के समय या तो कोई लॉन्ग ड्राइव या तो कोई रेस्टोरेंट जाने का प्लान करती। लेकिन आज कार न थी इस लिय रोहित बाबु थोड़े चिंतित से हुए पर यह क्या आज तो पत्नी के स्वर ही बदले हुए है , " हाँ आज शाम को माताजी के साथ हम मंदिर जायेंगे " पत्नी के स्वर में एक श्रद्धा और इज्जत थी। शाम को ऑफिस से लौटने के बाद रोहित बाबु पत्नी और माता पिता के साथ मंदिर गए शादी के बाद आज पहली बार माता पिता बहु बेटे के साथ मंदिर गए थे. पिता के आँखों में एक अजीब सी चमक थी, पत्नी के सम्बोधन में सम्मान था और पुत्र के विचारो में कर्त्तव्यबोध । आज उनकी वार्तालापों में कार न थी वो तो चुपचाप गैरेज में अकेली पड़ी थी।
अगले दिन सुबह जब रोहित बाबु की नींद टूटी तो देखा पत्नी पहले ही जग कर माँ संग रसोई में खाना बना रही थी , जब तक वो तैयार होते गर्मागर्म खाना तैयार थी , खाना खा कर जब वो ऑफिस जाने को हुए, तो पत्नी ने कहा "अरे चाभी तो ले लीजिये, even day है। रोहित ने पत्नी को प्यार से देखा और कहाँ "तुम्हारी हाथो से बना खाना खायेंगे, ऑफिस कार से नहीं जायेंगे " पत्नी सहज नेत्रों से पति को देख मुस्कुरा उठी।
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