• Published : 30 Sep, 2015
  • Comments : 0
  • Rating : 0

तुम्हारा
सीढ़ियों में बड़ा विश्वास था
तुम्हें बड़ी जल्दी
मालूम हो गया मह्त्व
सीढ़ियों का


मुझे अचरच होता है
क्यों कभी,
किसी सांप ने काटा नहीं तुम्हें 


वो तो बोहोत बाद में पता चला कि
उन साँपों से यारी हो चली थी तुम्हारी
काफी हद तक तुम भी
ज़हरीले हो चुके थे उनकी तरह 


तुमने जब चाहा 
बारी काट दी मेरी

तुम्हारे खेल में
मैं महज़ पासा बन गया
जिसे खुटखुटाया जा सकता है
किसी भी ख़ाली डिब्बे में
और पाया जा सकता है मनचाहा नंबर 

About the Author

Sunny

Joined: 24 Aug, 2015 | Location: , India

ख़्वाब देखने और लिखने का आदी हूँ. ...

Share
Average user rating

0


Please login or register to rate the story
Total Vote(s)

0

Total Reads

70

Recent Publication
Shri Ram Centre ka B.M. Snacks Corner
Published on: 01 Sep, 2015
Kiraye Ke Kamre Ka Monologue
Published on: 27 Aug, 2015
Saanp-Seeri
Published on: 30 Sep, 2015

Leave Comments

Please Login or Register to post comments

Comments