
ज़िन्दगी के सारे डरावने सपने
तुम्हें इसी कमरे में आयेंगे
सपने खारे पानी में
और नींदे वीरान टापू में तब्दील होंगी
गले में नुकीले कंक्कड़ चुभेंगे
और जमता जायेगा छाती की तलछट में
मकान-मालिक का रोज़ का अपमान
और उसकी शिकायतें
जबकि दीवार पूरी कीलों से भरी होगी
आप ठोक नहीं सकतें अपने हिस्से की कील
जिसपे आपको टांगनी थी
कोई प्यारी याद
दीवार के किसी भी जगह से झरेगा पलस्तर
उसके इकलौते और आखिरी
ज़िम्मेदार आप होंगे
कमरे की छत से टपकता रहेगा
मवाद-सा
और ज़रा भी दर्द कम नहीं होगा
किराये का कमरा तुम्हारे लिए दुर्घटना है
पल-पल घटती हुई एक त्रासदी
तुम्हारी छोटी-छोटी आज़ादी पर
होगा हमला
और क्योंकि आज़ादी भी
तुम्हारी तरह निहत्थी है
इसलिए मारी जाएगी.
About the Author

Comments