• Published : 26 Aug, 2015
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जहां गप्पे लड़ाने का कारण कुछ अंजानों का मिल-जाना था।

समय काटने के लिए उधर अंताक्षरी तो बस एक बहाना था।

तुम कभी नही समझ पाओगे, वो भी क्या एक ज़माना था।

किसी का कहना “लो बेटा तुम भी खाओ“ मुझे बढ़ा रास आता।

शायद इसलिए मुझे रेलगाड़ी का सफर बहुत था भाता ।

 

जहां कुछ सिक्को के बदले मिलता सुरीला गाना था।

उधर खिलौनो वालो का तो रोज़ का आना-जाना था।

आती छोटी भूख मिटाने, उसे खुद की बड़ी भूख को जो मिटाना था।

उसी बूढ़ी अम्मा के लाए बेर का स्वाद मुझे आज भी याद आता ।

शायद इसलिए मुझे रेलगाड़ी का सफर बहुत था भाता।

 

जहां छोटे बच्चों की मासूमियत भरी बातों का गुदगुदाना था।

उधर कितनी माँओ का सिलसिला नन्हों को पेड़ गिनवाना था।

खिड़की के बाहर रेल को देख किसी बच्चे का हाथ हिलाना था ।

उसकी मुस्कुराहट देख लगता मानो है उससे कोई नाता ।

शायद इसलिए मुझे रेलगाड़ी का सफर बहुत था भाता।

 

आज उसी रेलगाड़ी के, उसी डिब्बे में, खामोशी छा गई......।

यात्रियों के मोबाइल पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स जो आ गई।

ताकता रहता हूँ मैं की कभी तो सर उठा के मुसकुरा दे।

जों चुटकुला फोन पर पढ़ हँस रहा है ,ज़रा मुझे भी सुना दे।

अब अम्मा के बेर खाने मिले, ऐसी किस्मत है कहाँ ??

आजकल तो पैक्ड-फ़ूड आइटम्स की हुकूमत है यहाँ।

बच्चे अब बच्चे कहाँ ? कान तरसते हैं सुनने को बाते शरारत भरी।

“डोंट एक्ट लाइक अ किड” , “टॉक इन इंगलिश “ जैसे वाक्यों ने शायद यह हालत कर दी।

हाल यह है कि पूरे सफर खिड़की पर नज़र- बन गई है मजबूरी।

यह समय शीघ्र कटे, देखता रहता हूँ अपनी घड़ी हर घड़ी।

इस ख़ामोशी से बहुत चिड़ता हूँ मैं मन में कहीं।

चिड़चिड़ी तो हो गई है यह रेलगाड़ी भी।

शायद इसलिए करती है यह देर बड़ी ।

अब रेलगाड़ी का सफ़र ज़रा भी भाता नहीं।

About the Author

Roshni Chhabra

Joined: 24 Aug, 2015 | Location: , India

I am Roshni Chhabra studying Chemical Engineering in Bits Pilani,Pilani Campus.Reading and writing is not just my hobby, its necessity of my life. Apart from this I like photography, painting and playing keyboard. I love talking to new people and tra...

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