कुछ दुकाने लुटी कुछ मकां जल गए
इन वीरां दरीचों में मेरे अरमान जल गए
खवाबों कि स्याही से लिखे थे पल मोहब्बत के
यहाँ वो ख़वाब बिखरे हैं वहाँ वो लम्हे जल गए
उठा के ख़ाक तुम मेरी कमरे में सजा लेना
मिटाना दूरियों को था फकत एहसास जल गए
अब किस को दूं इलज़ाम इस दहशत के जलसे का
वादा था चिरागों का फिर क्यों इंसान जल गए
सियासत करने वालो तुम कभी तो होश में आओ
जलाने गैर का आए थे यहाँ अपने ही जल गए
क्यों ढूँढ़ते हो अब उसे मंदिर और मस्जित में
किसी का घर जलाया था वहीँ वो साथ जल गए
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