• Published : 06 Oct, 2015
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" इश्क़ उसका "

आज मैंने इठलाकर उदासी से कहा, छूकर देख़ मुझे

वो मुस्कुराई और बोली, खींच तो दूँ लकीरें माथे पे तेरे

मगर वो जो थामे है तुझे नज़र में अपनी

गिरने न देगा एक भी मुस्कुराहट पलक से तेरी

 

तन्हाई को भी आज़माया, कहा बस जा हथेलिओं में मेरी

 कुछ देर सोचकर बोली, समा जाऊँ बनकर तक़दीर तेरी

मग़र साये की तरह हर पल तुझे जो उजाले में थामे है

अँधेरे में चिराग़ बनकर रौशन कर देता है वो राहें तेरी

 

ज़िन्दगी से भी पूछकर देखा, इम्तिहां एक नया लेकर देख़ ज़रा

मासूमियत पे मेरी वो बोली, मुश्किलों के कांटे राहों में दूँ बिछा

 मगर फ़ूलों का बिछौना बनकर आग़ोश में जो बांधे है तुझे

धूप में भी नरम छाँव का बादल बनकर लहराता है सदा

 

 कबूल किया है उसने मेरे ज़ख्मों को ये खुदा की रेहमत है

इश्क़ उसका अब इबादत है, काफ़िर कहे ज़माना तो मंज़ूर है

 

 

About the Author

Bela

Joined: 25 Jul, 2015 | Location: , India

I hate to be boxed into here and there ; this and that as I keep  reshaping my mould. I have no To Be list and I keep rearranging  my To Do list. I write under the  Butterfly Monologues. My writings  are my takeaways from life and...

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