• Published : 04 Sep, 2015
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एक कोने में कब तक रहकर ,
जीवन अपना क्यूँ व्यर्थ किया,
जब कद्र नहीं तेरी उनको,
ममता का क्या ये अर्थ दिया?
स्वायत ये सारा विश्व रचित;
किन्तु ममता है क्यों निर्मित,
रचना अमूल्य माँ का अंचल,
नैतिक, पावन ,उद्धित, निश्छल,
सिंह-गर्जन था गौ के स्वरुप;
स्पर्श पुत्र की काया पर,
क्यूँ मिटी हुई सी गरिमा है,
आखिर क्यों चुप निर्मल ये अधर,
प्रतिछाया से ही हार मिली,
रचना जिसकी तूने की थी,
क्यूँ ह्रदय बनाया कोमल सा,
संतानों में दुनिया जी थी,
अपनी पीड़ा से उफ़ न किया,
क्यों विष सामर्थ्य का तूने पिया,
जो कष्ट पुत्र का बिन्दुतुल्य,
रो पड़ी करुण चीत्कार किया,
मानव वो उद्दंड बुद्धि के,
ममता पे जो है हसने चले,
पाश्विकता की तो हद कर दी,
निर्ममता के साँचे में ढले,
कृति तेरी तमस में डूब गयी,
उद्द्वेलित था जीवन तेरा,
क्यूँ प्रश्न पुत्र का आने पर;
उत्तर था ये है पुत्र मेरा|

 

About the Author

Adarsh Bhushan

Joined: 30 Aug, 2015 | Location: ,

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