
मैं खुश हूँ ;
अपने लिए,
अपनी उमड़ती आकांक्षाओं के लिए ;
खुद में सिमटी जिंदगी के लिए,
अपने खुदगर्ज ख्यालों के लिए,
फिर से उभरते ;
मन के अवकाशों को भरते,
कागज के परिंदों के फैसलों से,
बुनते नये सवालों के लिए,
मैं खुश हूँ ;
उस "काश" से स्वतंत्र,
उन्मुक्त सोच के लिए,
कृतघ्नता से परे,
आशातीत जीवन के लिए,
उन आयातित कृति-
श्रृंखलाओं के लिए,
प्रेम, विषाद, क्रोध एवं
शंकाओं से स्वायत;
उस परमात्मा से मिले,
इस अमोघ वरदान के लिए,
हाँ! मैं खुश हूँ ;
तात्पर्य के अन्वेषण में जुटे,
मस्तिष्क की उन कोशिकीय,
परिभाषाओं के लिए,
मैं खुश हूँ,
क्योंकि वो ईर्ष्यालु हैं,
मुझे खुश देखकर,
मेरी परंपरागत,
गतिविधियों का मूल्यांकन करते,
अनुगामी पदों को देखकर,
मैं खुश हूँ,
और हूँ भी क्यूँ ना,
मेरे पास दुखी होने का,
कारण जो नहीं है।
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