
पल, जो पल है पल-पल करके ,
बिखरा-बिखरा जाता है।
अँधियारा काला सरसर करके ,
निखरा-निखरा जाता है।
सेकंड ,मिनट ,दिवस और वर्ष ,
सरपट दौड़ा जाता है।
समय फिसलता रेत सदृश्य,
क्षण-भर कहाँ टिक पाता है ?
अजब-गजब धुँआ सा भरता ,
कल कहीं छिप जाता है।
सपना-तारा टिम -टिम करता
दूर नज़र कही आता है।
सुबह,सवेरा दर दर करके ,
फैला फैला जाता है।
अँधियारा काला सरसर करके ,
निखरा निखरा जाता है।
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