• Published : 24 Aug, 2015
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मेरा ही साया है जो,हर शाम,

मुझसे रु-ब-रु हुआ करता है । 

मेरी ही परछाइयों का,सरेआम,

अक्सर हिसाब किया करता है। 

 

परछाइयाँ मेरी कुछ-एक सफ़ेद हैं ,

या कुछ रंगीन और रंगहीन हैं ,

पर परछाइयाँ जो काली हैं मेरी, से 

इसका याराना पुराना लगता है ,

क्युंकि सामने  इनको ही,ये 

हर बार ला खड़ा करता है ,

मेरा ही साया है,जो 

हर शाम मुझसे रु-ब-रु हुआ करता है ।  

 

अजीब है,मैं आज में, 

कल फिर से जी लेती हूँ। 

बिसरी हुई गलियों के राज़,

फिर से पी लेती हूँ। 

सदियों पहले भींगी थी जिस बात पे पलकें मेरी,

वही क़िस्सा आँखों को नम  किया जाता है ,

जिस बात पे मुस्काई थी ,खिलखिलाई थी कभी,

आज वही फिर से चेहरे पे फूल खिला जाता है 

और वो साया ही है मेरा, 

हाँ,साया ही तो है ,जो हर शाम,

मुझसे रु-ब-रु हुआ करता है । 

मेरी ही परछाइयों का,सरेआम,

अक्सर हिसाब किया करता

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Hema Gusain

Joined: 17 Jul, 2015 | Location: ,

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