• Published : 24 Aug, 2015
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जो मौन तजे परित्याग करो,

 मेरे हित  में हुंकार भरो|

 तुमसे मिलने को व्याकुल मेरा,

 तन मन यही पुकार रहा|

 वो मेरी धारा बांध रहें,

 हर कण जिनका आधार रहा|

 तुम तक जाने क मेरे पथ में,

 इतने कांटे भर गए हैं |

 देख क पग पग ये बंधन,

 भगीरथ क आँखे भर गए है |

 जग में सब कुछ खो कर अपना,

बस तुमको ही पाया है|

 परिवर्तन को जितना तरसी ,

उतना दुःख गहराया है|

 अपने प्रति समर्पण का,

 इतना तो सत्कार करो|

 युग युग का मैं आधार बनी,

अब तुम मेरा आधार बनो|

 अपनी शीतल काया से मैंने,

 मेघों को मल्हार दिया|

 मृत होती अधरों को मैंने,

  जीवन का श्रृंगार दिया|

 सावन का स्वागत कर मैंने,

 पतझर का भी है वार सहा|

 खिली बसंतों में फिरसे से ,

हर ऋतुओं को सत्कार दिया|

सब दुःख को झेल मुझे ,

चैन तभी मिल पता है|

 मेरा मीठापन जब तेरे ,

खारे में मिल जाता है|

 मुझसे मिलने को नियम का,

 अब तुम तो प्रतिकार करो |

 युग -युग का मैं आधार बनी,

 अब तुम मेरा आधार बनो|

 ना मुझको अवरुद्ध किया है,

जटिल श्रृंखला पर्वत का|

 न तुमसे मिलने को रोका,

 आशूर कोई दानव दल का|

 कदम नहीं बढ़ पते हैं ,

 अब  पाओं भरे है छालों से|

 देख क अपनों की बेरहमी,

 मन भर गए सवालों से|

 मिलन घरी को तुमसे निकली,

 टूट रही हूँ राहों में |

तुम भी कुछ पग आगे बढ़ लो,

 ले लो मुझे पनाहों में|

अब मुझ तक आने को तुम,

 खुद ही खुद को तैयार करो|

 जब मेरी निर्मल धाराएं,

 स्वतः लुप्त हो जाएगी|

 जब तरस रहें अधरों को मेरी,

 नींद नहीं मिल पायेगी|

 तब विचलित हो कर ह्रदय तेरा,

 मुझे अपने पास बुलाएगा|

 अंकुश न रहेगा तुम पर तब,

 जर्रा जर्रा हिल जायेगा|

गर तब टुटा ये मौन तेरा,

 क्या प्रलय नहीं आ जायेगा|

 जीवन से भरी हर आँखों में,

 क्या सुन्य नहीं रह जायेगा |

उस महा प्रलय से रक्षण,

 को तुम अब मेरा स्वीकार करो|

 युग युग का मैं आधार बनी,

अब तुम मेरा आधार बनो|

About the Author

Anurag K Thakur

Joined: 17 Aug, 2015 | Location: ,

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