दर्द का एहसास अब कम ही कर पाते हो तुम,
नासूर बन गए हैं वक़्त के दिए सारे ज़ख़्म...
काट दिया है तुम्हे हालात के पैने खंजरों ने
यूँ झुकना फितरत में नहीं था तुम्हारी ...
सच के साथ जब डट के खड़े थे तुम …
राह में पड़े पत्थर तुमने तराश डाले थे|
माया के ये किस जाल में फँस गए हो …
एक मुसाफिर ही अपनी राह भूल चला है
लौट आओ वापिस अपने उस आशियाने में …
जहाँ से लोगों की ज़िन्दगी को बदल रहे थे तुम|
कीमती हीरे जवाहरात नहीं हैं यहाँ ….
सादगी की चादर में लेकिन गर्मी बाकी है…
मुड कर देख भी न रहे हो एक बार …
ये किस पड़ाव पे जा पहुंचा है कारवां …!
तुम्हारे शब्दों का मरहम अब नसीब नहीं ..
तिल तिल करती जल रही है तिलोत्तमा…..!
Based on the protagonist of A Thousand Unspoken Words by Paulami Duttagupta
Comments