• Published : 30 Sep, 2015
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जब क्षितिज पे सूरज ढलता है ​

दिल दीपक जैसे जलता है 

तुम यादों में मुस्काती हो 

मन थोड़ा और मचलता है 

जब क्षितिज पे सूरज ढलता है 

पुरवा मद्धम हो जाती है 

चिड़ियों के कोलाहल में 

अंतस् की सदां खो जाती है 

कुछ व्याकुल सा हो जाता हूँ 

जब क्षितिज पे सूरज ढलता है 

दिवस रैन हो जाता है 

तारों की शीतल छाँव में 

सब चैन शुकुं खो जाता है 

मिलन के संग जुदाई है 

बस इक सन्देश निकलता है 

जब क्षितिज पे सूरज ढलता है 

दिल दीपक जैसे जलता है 

 

 

About the Author

Brijesh Kumar

Joined: 27 Aug, 2015 | Location: , India

भावों को शब्दों में ढाल देता हूँ,कुछइस तरह दिल का गुबार निकाल देता हूँ ...

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