
वो मंजिल मुकम्मल ना हुई , वो सफर मुकम्मल ना हुआ निकला था वो घर से , फ़िर सुकून मुकम्मल ना हुआ
वो जमीं मुकम्मल ना हुई , वो आसमान मुकम्मल ना हुआ जिन्दगी खप गयी पूरी , दो ईंटों का घर मुकम्मल ना हुआ
वो बरसात मुकम्मल ना हुई , वो सावन मुकम्मल ना हुआ ख्वाहिश थी उसे फूलों की , उसका गुलिस्तान मुकम्मल ना हुआ
वो माँगे मुकम्मल ना हुई , वो ऐशो - आराम मुकम्मल ना हुआ शिकवा रहा उसके बीवी - बच्चो को हरदम , उसका परिवार मुकम्मल ना हुआ
वो हसरतें मुकम्मल ना हुई , वो मुकद्दर मुकम्मल ना हुआ बड़ी बुझी - बुझी सी गुजरी जिन्दगी , ताउम्र उसका चिराग मुकम्मल ना हुआ....
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