नन्हें-नन्हें मेरे कदम
कब बड़े हो गये
माँ-बाबा मुझे पता नही चला |
कब डोली सजी
कब मैं परायी हो गयी
माँ-बाबा मुझे पता ही नहीं चला |
सिर्फ एक तसल्ली थी
मन में मेरे
कि धरती माँ की बड़ी सी गोद में
जन्नत सा सुन्दर
मायका है मेरा |
जहाँ……
दरख्तों सी ठंडी है छाँव
माँ के आँचल की
जिसमें लिपटकर
दो घड़ी ही पर सुकून से सोती हूँ मैं |
पहाड़ो से ऊँचा है होंसला
मेरे बाबा का साथ
जिसके सहारे
आसमां से मिलती हूँ मैं |
भंवरों-फूलों सी गहरी है दोस्ती
मेरे भाई और मेरी
जिसके रंग
हर पल खिलखिलाते है मुझे |
मिश्री से मीठे है एहसास
बचपन के मेरे
जो कभी गुदगुदाते है
कभी रुला जाते है मुझे |
है गालियां प्यारी पिया की
रंग, रौशनी, खुशबू
सब कुछ है यहाँ |
पर, फिर भी जब से छूटा अंगना तुम्हारा
कहीं भी ना मिली छाँव मुझे
माँ तेरे आँचल सी |
कहीं भी ना मिला सुकून मुझे
तुम्हारे आँगन सा |
क्यों छूटा मुझसे अंगना तुम्हारा,
माँ-बाबा बताओ ना मुझे|
किसने ये रीत बनायीं,
क्यों ये रीत बनायीं,
तुम बताओ ना मुझे|
Comments