• Published : 30 Sep, 2015
  • Comments : 64
  • Rating : 4.78

नन्हें-नन्हें मेरे कदम 

कब बड़े हो गये 

माँ-बाबा मुझे पता नही चला |

कब डोली सजी 

कब मैं परायी हो गयी      

माँ-बाबा मुझे पता ही नहीं चला |

 

सिर्फ एक तसल्ली थी 

मन में मेरे 

कि  धरती माँ की बड़ी सी गोद में 

जन्नत सा सुन्दर 

मायका है मेरा |

 

जहाँ……

दरख्तों सी ठंडी है छाँव

माँ के आँचल की 

जिसमें  लिपटकर  

दो घड़ी ही पर सुकून से सोती हूँ मैं |

 

पहाड़ो से ऊँचा है होंसला

मेरे बाबा का साथ 

जिसके सहारे 

आसमां से मिलती हूँ मैं |

 

भंवरों-फूलों सी गहरी है दोस्ती

मेरे भाई और मेरी 

जिसके रंग 

हर पल खिलखिलाते है मुझे |

 

 

मिश्री से मीठे है एहसास 

बचपन के मेरे 

जो कभी गुदगुदाते है

कभी रुला जाते है मुझे |

 

है गालियां प्यारी पिया की 

रंग, रौशनी, खुशबू 

सब कुछ है यहाँ |

पर, फिर भी जब से छूटा अंगना तुम्हारा 

कहीं भी ना मिली छाँव मुझे 

माँ तेरे आँचल सी |

कहीं भी ना मिला सुकून मुझे

तुम्हारे आँगन सा |

 

क्यों छूटा मुझसे अंगना तुम्हारा,

माँ-बाबा बताओ ना मुझे|

किसने ये रीत बनायीं,

क्यों ये रीत बनायीं,

तुम बताओ ना मुझे|

About the Author

Nidhi Parikh

Joined: 31 Aug, 2015 | Location: , India

I am an avid reader by nature and a copywriter by profession. More than that, I am a rider on the journey of becoming a passionate writer and a poet. Since adulthood, novels, poems and stories written by famous as well as rookie authors and poets inf...

Share
Average user rating

4.78 / 37


Please login or register to rate the story
Total Vote(s)

50

Total Reads

612

Recent Publication
Only You
Published on: 05 Sep, 2015
A Soldier's Voice
Published on: 04 Sep, 2015
Maayaka
Published on: 30 Sep, 2015

Leave Comments

Please Login or Register to post comments

Comments