खुद मे खोया सा,सोया सा..
याद कर रहा तुम्हारी मुस्कुराहट..
पतझड की रुखी हवाओ से..
ऊब रहा हु मै आज,
ना जाने क्यु याद आ रही है,
तुम्हारे कदमो की आहट..
वजह -बेवजह हसता हु मै..
वजह-बेवजह रोता हु मै,
होता है जब जब बेचैन मन..
तन्हा तकियो को पकडे सोता हु मै..
आज फिर तुम्हारी याद आयी है..
फिर कुछ किस्से याद दिलाई है..
धूल से जमे सन्दुक मे देखा..
तुम्हारी वही लाल साडी..
जिसमे तुम्हे पहली बार देखा था,
फिर उभर आयी एक तस्वीर,
घुंघट मे छिपे चांद की..
तब छण भर मुस्कुराया था..
खिल्खिलाया भी था,
फिर आंखो मे हर बार की तरह आये थे आसू..
जिससे तुम हर बार चिढती थी..
पल भर मे पोछ लिया आँसू,
कोई देख ना ले मर्द को रोते हुए..
अपने प्रेम के लिये रोते हुए,.
कोई देख ना ले,बिते समय मे खोते हुए..
देखो ना पत्झड़ की उदासी मे,
याद कर रहा तुम्हारी मुस्कुराहट..
खुद मि खोया सा,सोया सा..
याद कर रहा तुम्हारे कदमो की आहट.
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