• Published : 05 Sep, 2015
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कपकपाती ठण्ड 

अँधेरी झोपडी

फटी पुरानी कथड़ी में

लेटा हुआ एक बृद्ध

रिश्तों का ठुकराया हुआ

जिसने रिश्तों के लिए अपने

जीने के मायने बदले थे

आज उठता है चारपाई से

और पकड़ता है खुरदुरी लाठी

जिसने कभी थमी थी मुलायम उंगलिया

जलाता है चिराग,अँधेरी झोपडी में,

मद्धम सी रौशनी ,न मिटने वाला अँधेरा

ढूंढता है फटे पुराने थैलो से,

खाने के लिए कुछ

तीव्र होती है,झोपडी में रौशनी

जब जब सुनता है दरवाजे पर

दस्तक की धीमी आवाज,

खोलता है कपकपाते हाथो से दरवाजा

पाता है सनसनाती हवाओ से

बिखरे पत्तो की खरखराहट

ठीक उसके सपनो की तरह

लुढक जाती है,दो बून्द आँखों से

भींग जाती है पलके

फिर जा लेटता है चारपाई पर

कल उनके आने की आशा में

About the Author

G K Gaurow

Joined: 14 Aug, 2015 | Location: , India

I am a bloody writer...Mai wahi likhta hu jo hota hai..Na ki wo jo hona chahiye......

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