• Published : 03 Sep, 2015
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लबों की लरज़िशों से दिल की कसक छुप न सकी
झुकि-झुकि  सि  निगाहें,  संभल-संभल के उठीं

हया ओ शर्म का ज़ेवर, जो पहन कर आए
ना किसी और गहने की फिर कमी हि लगी

उस  ने  राग-ए-तरन्नुम  नज़र से छेड़ दिया
दिल के साज़ पे, उल्फत की धुनें बजने लगीं

लदे - लदे थे जहाँ  फल, दरख़्त झूल गया
जहाँ पे खाली थी शाखें, तनी-तनी हि रहीं

सुबह  को  ओस  की   बूँदो   से  जब  सजी  धरती
फलक को अपने भी दामन मे कुछ कमी सि लगी

निज़ाम-ए-इश्क़* बनाया था इस तरह चुन कर
सभी था उस में, मगर इश्क़ की कमी सि लगी

*निज़ाम-ए-इश्क़ = रिश्तेदारों द्वारा तय की गयी शादी , Arranged Marriage

 

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Haider Ali

Joined: 30 Aug, 2015 | Location: ,

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