समा कुछ इस तरह हो जाएगा,
क़हर बरपा यहाँ हो जाएगा,
ख़ुशी काफूर हो जायेगी उस दम,
जो दानव भूख का आ जाएगा ।।।
वहाँ राते हें रोशन, चिरागां खूब होता है,
बड़े लोगो की मेहफिल का यही मामूल होता हे,
यहाँ बस्ती में तशवीश ए ग़ीजा अव्वल फ़क़त यारों,
चिरागां भूल कर के सब, यहाँ रोटी जुटाते हैं ।।।
बड़े लोगो की मेहफिल से बचे रोटी के कुछ टुकड़े,
अँधेरा देख कर गलियों में, सारे फैंक जाते हैं,
वही रोटी उठाते हैं, हम खुशियाँ मनाते हैं,
दुआ हम खूब देते हैं, जो खाना फैंक जाते हैं ।।।
यूँ तो रौशनी से बरकत होती है,
हमारे मुक़द्दर अँधेरे हैं,
खुदा ही खुद हमें अन्ध्यारे में बरकत उतारे हैं,
अँधेरा रखते हैं, तब ही तो खाना फैंक जाते हैं ।।।
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