जहाँ जन्म से पहले ही,
लड़की होने पर मनाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है,
जब शाम ढलने पर,
बाहर जाने की मनाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है..
हर छोटी बात पर,
ग़र देनी सफाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है,
जहाँ हक़ पाने के लिए,
समाज की सोच से लड़ाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है..
जहाँ देश का किसान,
खुद रोटी को तरसता हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है,
जहाँ धनी और अमीर बनें,
और निर्धन ही भिखारी हों,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है..
बराबरी के हक़ में,
ग़रीब की ना सुनवाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है,
धर्म निरपेक्षित देश में,
भिन्न धर्मों की लड़ाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है..
जहाँ वोट देकर भी,
सिफारिशों की दुहाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है,
लोकतंत्र की व्यवस्था में,
ग़र जनमत से बेवफ़ाई हो,
वो आज़ादी नहीं क़ैद है..
कौन है क़ैद, कौन है आज़ाद,
सोचने की ज़रूरत है आज,
सच्चे वीरों ने बहाया था खून,
आज के 'भारत' की आज़ादी,
नहीं थी चंद घड़ियों की बात..
थोड़ा सोचे और विचार करें,
'आज़ादी' की परिभाषा का सम्मान करें !
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