• Published : 14 Sep, 2015
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हैं  भीड़ बहुत   इस शहर की हर गली में यूँ तो /

 इंसान  एक भी नज़र  फिर  आता नहीं क्यूँ ?

 

रोशन है हर  गली हर कूचा  इस शहर का यूँ तो /

 अजब सा एक अंधेरा हर दिल में छाया है क्यूँ ?

 

पहने है हर कोई  रंगीन   लिबास   यूँ तो /

 छाये हैं  फिर   चेहरों पे उदासियों  के गहरे साये क्यूँ ?

 

 

छू  लिया   इंसान ने आसमां की हर बुलंदी को यूँ तो /

 दिलों में  इक दूजे के इतने फासले  फिर आ गये क्यूँ /

 

  कहने को  है   शांत  बहुत,  माहौल इस शहर का  यूँ तो /

 हर दिन ही आने को रहता तैयार इक  नया  तूफान क्यूँ /

 

 ऊँची दीवारें, मजबूत  दरवाजें  हैं सारे  हिफाजत के सामान यूँ तो /

  आये दिन कई मासूमों   का  वज़ूद होता  यहाँ  फिर   तार तार क्यूँ /

 

लड़ना होगा उनसे ही  जो है चमन के पहरेदार यूँ तो /

 कर दिया उन्होंने ही , तूफानों   के हवाले चमन  फिर अपना   क्यूँ /

 

  हक़  है हर रंग ,हर मज़हब, के इन्सां को  जीने का यूँ तो /

 भूल  रहा   फिर  भी  इंसानियत  रोज के झगड़ों में आज का इंसान  क्यूँ /

About the Author

Saroj Singh

Joined: 13 Apr, 2014 | Location: , India

I loveto  write and read  poetry  ,stories .memoirs etchave witten a poetry  book which is under publication right now ...I  write on  three...blog  .  1.dalal saroj 99.wordpress.com  (meri jamin mera...

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