पूछना है आज तुझसे बस इक सवाल यही /
मुझे बनाने वाले /
क्यों दी नजाकत की सौगात मुझे ?
जब चलना ही था कठोर कंटीली राहों पर /
क्यों दी मुझे उड़ानें उम्मीदों की ,आशाओं की ?
जब मेरी परवाजों की किस्मत में तो ताले ही लिखे थे /
क्यों बहाये हृदय में मेरे भावनाओं के सागर ?
जब मुझे तो सूखे सेहराओं में ही जीना था /
क्यों बसाये वो सुनहरे सपने मेरे नयनों में ?
जब दिन का उजाला ही नहीं उन सपनों के नसीब में था /
क्यों मेरे हृदय को जकड़ दिया नेह और ममता की उस डोर से?
जो बन गई बेड़िया मेरे ही पैरों की/
क्यों मेरे कन्धों पर रिश्तों को भी ढ़ोने का भार डाला /
जिनको चुनने का हक़ भी मुझे नहीं था ?
क्यों मुझे समझ का तोहफा दिया तूने /
जब मुझसे मुतालिक फैसले करने तो औरों को ही थे /
क्यों दिखाए सपने उस जीवन के मुझे ?
जिस को देने वाले ही मुझे कत्ल कर रहे अपने ही हाथों से /
बन कर रह गया है क्यों?
जीवन मेरा अनवरत संघर्षों की एक दास्ताँ /
सोचता तो होगा तू भी कभी तो /
मुझको बनाने वाले /
जीवन को सुंदर बनाने वाली तेरी ही इस रचना का /
सृष्टि में सृजन का योगदान देने वाली नारी का /
सुख दुःख में मानव के साथ निभाने वाली नारी का/
वज़ूद तार तार हो रहा सरे आम क्यूँ ?
अपने अस्तित्व की अस्मिता पर वह सवाल कर रही है क्यूँ ?
सोचता तो होगा तू भी कभी तो /
मुझको बनाने वाले ..........
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