• Published : 20 Aug, 2015
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फिर ज़ब्त मेरे हाथ से ऐसे फिसल गया

जैसे के आफताब को दरिया निगल गया

तय था के उसकी ओर न देखूंगा इस दफ़ा

वो ख्वाब में आकर के इरादे बदल गया

लो फिर नियाज़-ओ-नाज़ ने उलझा लिया मुझे

लो फिर नमाज़-ए-शौक ज़रा और टल गया

हैरत की बात है किसी लाज़िम सी शै पे भी

इक नासमझ बच्चे की तरहा जी मचल गया

फिर से ख़ुदी का बुत बना के मोम से,उसे

आतिश की आंच रख दिया वो फिर पिघल गया

ज्यों हादसे से आ गया हो इस जहां में वो

कुछ वक़्त अजनबी सा रहा फिर निकल गया

About the Author

Siddharth Singh

Joined: 13 Aug, 2015 | Location: ,

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