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गरम दूध का गिलास

मेज़ पे रखा करती थी माँ

सुबह सुबह

मैं बैठी रहती थी

आधी नींद में

कुछ सोचा भी करती थी शायद

दूध ठंडा हो जाता 

फिर झट से उसे पी लिया करती

स्वाद नहीं पसंद था मुझे

आज वो गरम दूध की यादें

ठंडी पड़ रही हैं

एक एक घूंठ का लुत्फ़ उठाती हूँ

अपने ज़हन में सहेज कर

वक़्त की रफ़्तार बड़ी तेज़ हो चली है

पलक झपकते ही दिन गुज़र जाता है

साल लेहरों की तरह बहे जा रहे हैं

माँ आज भी दूध का गिलास मेज़ पे रखती

अगर पीने का वक़्त होता तो

वक़्त यादों में सिमट कर रह गया है

दूध का वो गिलास आज ठंडा हो रहा है ...

About the Author

Sagorika

Joined: 21 Jul, 2015 | Location: , India

Words became verses... And I found myself turning to a poetess......

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