• Published : 04 Oct, 2015
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बहुत कुछ कहते थे हम से

बहुत कुछ सुना करते थे

हाल हमारा पूछ लेते थे अक्सर

बस अपना न बयां करते थे

हम पूछ भी जो लेते उनसे

तो मुस्कुरा दिया करते थे

आधी रोटी कम खा कर

हमारी ख्वाइश पूरी करते थे

आँसू न आ जाये कहीं हमारी आँखों में

अपने ज़ख्मो को छिपाये रखते थे

कुछ नहीं करते लगता था हमे

पुर सब कुछ किया करते थे

 

आज वो कहाँ हैं?

 

बेघर... मौत का इंतेज़ार कर रहे

मकान तो नहीं... दिल छोटे पड़ रहे 

यादों में ही सही...जी लिया करते है...

सांसें बाक़ी है... यादें कम पड़ रहे...

About the Author

Sagorika

Joined: 21 Jul, 2015 | Location: , India

Words became verses... And I found myself turning to a poetess......

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