दूर वह जा रहा है
वारिधि में छोटी नौका की भाँति बढ़ रहा है ।1।
कांटे चुभे थे जीवन पथों में
पगों से खून निकलता रहा
परंतु विषाद मार्ग में वर्षों
मौत सा अडिग, वह चलता रहा ।2।
पूर्ण मयंक हुआ अब, कौमुदी प्रकाश
दृग के तमिस्र में भरता आस
जीर्ण ओंठों पर संतुष्ट जीवन का स्मित
सम्पूर्ण शून्य निहारता वो विस्मित ।3।
मृत्यु है अभ्युदय,
जान यह , वह कदम बढ़ाए
छोड़े निशा को वो,
यम मरीचि दिखाएँ ।4।
आज शव के मुख पर,
ब्रह्म अंश सा तेज
कल के शैल नतमस्तक हुए
पूर्ण विराम से जन्मा कैसा वेग ।5।
कालिंदी के तट पर,
शोकाकुल परिवार
तन छोड़ आगे चला
की मोह बाधा पार ।6।
सुत करता परिक्रमा,
कलश तोय बह रहा
जन्मा था रोता हुआ
आज चन्दन है सुख दे रहा ।7।
ज्ञात है उसे भी
मिलने को हैं मुरारी
अग्नि में पावन हो रहा तन
आत्मा भी कुन्दन हो रही ।8।
जीवन भर होते अराति
आज मुक्त अजातशत्रु ,
चिता की पावक द्युति में
मानो दिव की चारु ।9।
मृत है अब वो,
ना गेह की याद सताती है
ना कांता की पुकार,
ना रतिपति की फुलवारी बुलाती है ।10।
त्रिपथगा सा जीवित,
अब वह बढ़ गया
क्षीर सागर में आज,
वह तर गया ।11।
अग्नि भी धीमी पड़ चुकी है
आत्मा ‘पट’ छोड़, बढ़ चुकी है
नौका रहित अब वारिधि नज़र आ रहा है
दूर वह जा रहा है ।12।
दूर वह जा रहा है
तमसा का अंधेरा छा रहा है , छा गया है ।।
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