.
चल पड़ा दृगों को ढूँढने,
साबरमती से शांतिनिकेतन घूमने
दृगों का सोम भारत भूमि सींचता,
देश दशा के क्षोभ में मुट्ठी भींचता I1I
ग्रामों का भारत, शहरों में बसा है
किसान दानों की खरीद फ़रोख्त में फँसा है
पैदावार खूब होकर भी, गरीब खाने को तरसता है
सरकारी कामों की गति तो छोड़ो, कानून की हालत भी खस्ता है
“कुव्यवस्था” मेरे पथ का प्रथम शूल है,
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I2I
‘आम’ थे जो सबके कल तक, पक कर अब वो ‘खास’ हो गए
पार्टी प्रचार में जनता के करोड़ों रुपये साफ हो गए
दूजी खिसियानी बिल्ली खंभा नोच रही है
लोकसभा न चलने देकर, सिर्फ अपना अपना सोच रही है
बाज़ारू बन गई नेतागिरी, हर कोई चाटता अपना थूक है
“राजनीति” गिर गई साख से,
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I3I
कमरतोड़ महंगाई के बीच, मनोरंजन का बहाना है
उद्देश्य क्रिकेट भावना नहीं, बस पैसा कमाना है
महंगा अन्न, महंगा जीवन, जीने की इच्छा भी महंगी है
और खेलों के लिए पैसे नहीं, पर सटोरियों का IPL ज़रूर कराना है
“आर्थिक सशक्तता” मुझ पथिक का काल्पनिक फूल है,
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I4I
देखी है मैंने विद्या, तराजू में बिकती हुई
ज्ञान की रोटी, जातिवाद के अंगारों पर सिकती हुई
आरक्षण का जलजला, अध्ययन पर भी टोक लगाता है
‘सामान्य भारतीय’ संख्या में अधिक, पर फिर भी नज़रों में नहीं आता है
“विद्या का आरक्षण और व्यापार” , मेरे पगों में चौथा शूल है
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I5I
पहुँचा मैं स्वर्ग, धरती का ही सही
कश्मीर के शिकारियों के बीच, शिकारा झूलती
जब सिंधु सरहदें नहीं जानती
फिर हमारी आँखें क्यों पाक और हिन्द पहचानती ?
अपनों से गैर बहुत हुआ, पर दूजी कारगिल को स्थिति माकूल है
पैर छलनी हैं मेरे “सीमा विवाद” से
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I6I
भटका हूँ मैं, किस प्रदेश में आ गया
सोचा था मैंने, सुंदरबन लगा नया नया
जब ना राष्ट्रीय पशु की दहाड़ सुनाई दी
अपने जीवन की खातिर, प्रकृति की ईह लीला मिटाई गई
“प्रकृति की ओर लापरवाह रवैया” षष्ठम शूल है
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I7I
हाथी चला जब चाल अपनी , यूपी को बाँट बनाई ढाल अपनी
बनाने में हाथी, उड़ाई सब चांदी ,
टूटी हैं सड़कें – भूखी नंगी आबादी
जात को रस्ता बना ,
सत्ता के भूखे पहने हैं खादी
“शोषक प्रशासन” झोंकता, आँखों में सबकी धूल है
पूछता हूँ आपसे-
क्या यही भारत की भूल है? I8I
कानून सिर्फ अंधा नहीं, गूंगा रिश्वतखोर है
तराजू को न्याय नहीं, पैसा झुकाता अपनी ओर है
वकीलों की आई मौज है, तानाशाही पुलिस फौज है
कोयला घोटाला भूले नहीं, 2जी होता रोज़ है
“जिसकी लाठी उसकी भैंस” – ये कहाँ का Rule है?
पूछता हूँ आपसे-
क्या यही भारत की भूल है? I9I
भारत ‘माता’ है, गाय ‘माता’ है
गौर फरमाइए – गंगा भी देवी हैं देव नहीं
फिर भी हर कल्पना चावला का गला घोटने में,
माँ बापों की रूह काँपती नहीं !
“भ्रूण हत्या” है अभिशाप, ममता भी कितनी क्रूर है
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I10I
पौ फटी, थी सोच मेरी – गरीब देश है हमारा
कौमनवेल्थ खेलों में, करोणों का माल डकारा
नेता, ठेकेदार, मज़दूर तक धनवान हुए
लोन वर्ल्ड बैंक का, फिर क्यों न जाता उतारा ?
चोर तभी जब पकड़ा जाए, वरना कातिल भी बेचारा
“भ्रष्टाचार” सभी पापों का मूल है
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I11।
उड़ीसा में ईसाई जलाए थे हमने, भूल गए थे
जलनेवाले भी हम हैं, जलानेवाले भी हम हैं
मुजफ्फरनगरवाले भी हम हैं, बाबरी-अयोध्या वाले भी हम हैं
एकसा लाल खून है सबका, क्या बात ये इतनी गूढ है?
“धार्मिक विवाद” इस तरु की जड़ों में आरूढ़ है
पूछता हूँ आपसे –
क्या यही भारत की भूल है? I12।
भँवरा हूँ मैं, पुष्प ढूंढने चला था
क्या पता था मधुबन जल कर राख़ हो गया है
देवों की भूमि के मालिक हो आप, माली हूँ मैं
राख़ माथे पर लोटता
पगों के शूल निकालना चाहता हूँ
इन भूलों का उपाय खोजता
भारत का आज आप हैं, कल मैं हूँ
नया बाग लगाना चाहता हूँ,
जगह-जगह क्रांति के बीज रोपता ।
क्रांति के बीज रोपता ॥13॥
Comments