
भूण
प्यारी सी कली का बस अंश आया था
माँ का आँचल भी उसे खूब भाया था
अभी बस वो माँ में ही समायी थी
भगवान के घर से वो माँ की कोख में आई थी
माँ की कोख में वो सपने सजा रही थी
दुनिया को देखने के लिए उसकी नज़रे ललचा रही थी
ख्वाब थे उसके आँखो में ,अरमान बस उड़ना सीख रहे थे
मृग सी खेल रही थी वो ,पख बस अभी खुल ही रहे थे
इस निर्दयी दुनिया से , थी वो
इस युग को चाहिए थी बस उसकी जान
सबको चाह थी तनय की ,नहीं सुनी थी तनया की
रश्मि थी वो कोख में ,पर अब तिमिर में उसकी ज़िन्दगी थी
नन्ही सी कली को मार डाला
मंजरी बनने से पहले ही उसे उजाड़ डाला
माँ का मनोरथ टूट गया
आँखो से भी नयनजल छूट गया
माँ की आत्मा रो पड़ी
उसकी आत्मजा उसे छोड़ चली
क्या दोष था उस नवजान का.…… जिसे दुनिया ने मार दिया
क्या बस यही दोष था...... की उसने लड़की बनकर जनम लिया??
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