काफ़िया -अल....रदीफ़ -रही
२१२२ २१२१ २१२
चल रही है साँस साँझ ढल रही
रूप कितने जिन्दगी बदल रही
तोड़ती आशा कभी सँवारती
हर कदम इंसान को ए छल रही
आदमी में हर तरफ हुँ देखता
नेह में इक वेदना ज्युँ पल रही
दूर से क्या आप जान पाओ'गे
भावनायें किस तरह मचल रही
सूख के बंजर हुई वो' प्रेम की
इक नदी बहती यहाँ से'कल रही
आइने के सामने सवाल रख
हर गली कूचे कली क्युँ जल रही
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