तुम्हे लगता है सच शब्दों के बीच रहता है?
घुमावदार सड़क के मोड़ पर बैठता है?
चौराहे पर खड़ा, सिर्फ ज़ोर से हँसता है?
अँधेरे में सबको और सब कुछ देखता है?
मुझे लगता है सच न कुछ दिखाता है न बोलता
और न ही किसी दरवाज़े को कभी खोलता
सच एक आम आदमी की तरह जीता है
झूट के चीथड़ों को सीकर पहनता है
लोग कहते हैं कि झूठ चाह है और सच आह
जब जब यह साथ चलें, तब एक क्षण की वाह
सच मानो, झूठ भी तो सच्चे दिल से जीता है
कुछ अनकहे सच के सिलसिलों को सीता है
सच तो सब तरफ है, झूठ कहीं नहीं कभी
कहानियां हम बनाते भी हैं और झुटलाते भी
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