• Published : 24 Aug, 2015
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तुम्हे लगता है सच शब्दों के बीच रहता है?

घुमावदार सड़क के मोड़ पर बैठता है?

चौराहे पर खड़ा, सिर्फ ज़ोर से हँसता है?

अँधेरे में सबको और सब कुछ देखता है?

मुझे लगता है सच न कुछ दिखाता है न बोलता 

और न ही किसी दरवाज़े को कभी खोलता

सच एक आम आदमी की तरह जीता है 

झूट के चीथड़ों को सीकर पहनता है

लोग कहते हैं कि झूठ चाह है और सच आह 

जब जब यह साथ चलें, तब एक क्षण की वाह

सच मानो, झूठ भी तो सच्चे दिल से जीता है 

कुछ अनकहे सच के सिलसिलों को सीता है

सच तो सब तरफ है, झूठ कहीं नहीं कभी 

कहानियां हम बनाते भी हैं और झुटलाते भी

About the Author

Arvind Passey

Member Since: 28 Mar, 2014

Arvind Passey began his professional life marching up and down the drill square of the Indian Military Academy as a gentleman cadet and ended his job-era playing hide-&-seek with media teams as the head of Corporate Communications. He also w...

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