आया था वो कुछ रिश्ते कुछ नाते लेकर
लौट गया वो यादों की भीनी बारातें देकर !
रेशमी एहसासों के मन में दीप जलाकर
लौट गया वो अंधियारों की सौगातें देकर !
जीवन मरुथल पर उमड़ा बादल बनकर
लौट गया वो मरीचिका सी बरसातें देकर !
बरसा था कभी खुशनुमा मौसम बनकर
लौट गया वो जेठ दुपहरी मुलाकातें देकर !
आँखों में बसंती ख्वाबों के अँकुर उगा कर
लौट गया वो सूनी सी पतझड़ी बातें देकर !
दहलीज़ पर टँगा था पूनो का चाँद बनकर
लौट गया वो मावस की काली रातें देकर !
मखमली अफसाने अपनेपन के जगाकर
लौट गया वो तन्हाईयों की चंद घातें देकर !
Comments