• Published : 30 Sep, 2015
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ना जाने किस नशे में था जो ऐसा झूल गया, 

लगता है चाँद अपनी औकात भूल गया।

 

अँधेरे में अकेला वो यूँ चमकता रहा,

अमावस की भी होती है रात भूल गया।

 

सरफिरे आशिको ने दो शेर क्या लिख दिए, 

ये भी आशिक हो गया, अपनी बिसात भूल गया।

 

सागर की लहरे जो चल दी इसके इशारो पर,

लम्बी ही सही, पर ढ़लेगी ये रात भूल गया। 

 

ना जीने को हवा है, ना पीने को पानी

खिलोने नहीं होते जसबात भूल गया।

 

इसकी छाया में जो मुस्कुरा दिए चंद इंसान,

ये पागल हो गया अपना भगवान् भूल गया।

 

दूसरो की कहानीयों का हिस्सा तो बन गया,

अपनों की कही हर बात भूल गया।

 

धुप से उधार लेकर बिखेरी इसने चाँदनी, 

खुद कंगाल है, अपने हालात भूल गया।

 

सूरज नहीं तो कुछ नहीं है पास इसके ,भूल गया

और ना जाने किस नशे में था जो ऐसा झूल गया, 

लगता है चाँद अपनी औकात भूल गया।

About the Author

Abhay Raj Dawra

Joined: 25 Aug, 2015 | Location: , India

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