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जुगनू बन कर मिलता है
एक शख्स मुझे अन्धेरों में,
कभी तन्हाइयों के डेरों में
कभी मुस्काते हुए सवेरों में,
ठहरी हुई ज़िन्दगी में 
तो कभी उठती हुई लहरों में !
जब ग़म के बादल छाते हैं
वो साया बन कर आ जाता है,
एक अपना सा वो शख्स लगा
इन अजनबी से चेहरों में,
जीवन की हर मुश्किल राह में
सोचा करती हूँ उसे ही पहरों में !
मैं आसूँ बन कर ढ़ह जाती 
गर वो न होता इन गैरों में,
नाम विश्वास बताया करता है
शायद रहता है इन्हीं छोटे मोटे शहरों में !  

 

About the Author

Ishq Niyazi

Joined: 28 Aug, 2015 | Location: , India

My pen name is "Ishq Niyazi". I belong to Niyazi Sufi Silsila (Precious Treasure of Tasawwuf), an Islamic community. Writing is my soul urge and passion from the beginning but the love of God and Sufism converted me into a writer.My birth n...

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