• Published : 30 Sep, 2015
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न जाने शाम ने क्या कह दिया सवेरे से, 

उजाले हाथ मिलाने लगे अँधेरे से

शजर के हिस्से में बस रह गयी है तनहाई, 

हर इक परिन्दा रवाना हुआ बसेरे से 

अभी ये रोशनी चुभती हुइ है आँखों में, 

अभी हम उठ के चले आए हैं अँधेरे से 

जो उसकी बीन की धुन पर हुआ है रक्सअंदाज, 

ठनी रही है उसी  साँप की सपेरे से

तुम्हारा शहर ए निगाराँ तो खूब है अज़हर, 

बचा के लाए हैं दिल आरज़ू के घेरे से

About the Author

Azhar Nawaz

Joined: 23 Aug, 2015 | Location: , India

Mr. Azhar Nawaz is from Azamgarh. He is a student of  M.A.(English) at Jamia Millia Islamia. He writes poetry in Urdu and has been regularly participating in poetry recitation programmes and other literary activities....

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Published on: 30 Sep, 2015

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