तुम जानते हो न,
ये रात की कटोरियों में
चाँद चखे
कितना वक़्त हो गया है
मुझे -तुम्हे
तुम जानते हो न
शहद सी वो बातें तुम्हारी
टपकती है आज भी
तन्हाइयों के पेड़ों से
हौले हौले
तुम जानते हो न
आज के दौर में भी
पनपती हैं मोहब्बतें
जिस्मानी प्यार से परे
बीच तुम्हारे -मेरे
चाँद ,पलाश और मैं भी
देखते हैं ..रास्ता तुम्हारा
जैसे लौट आओगे तुम
चंद रस्में निभाने
तुम जानते हो न.....
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