फ़िज़ाएं भी बदलें तुम्हारे इशारे
घटाओं की स्याही का ख़त हो तुम |
बेमानी इन ज़ुल्फ़ों की साजिश है ये भी
कि रातें समेटे बैठे हो यूँ तुम |
गहरे इस काजल में छिप के तो बैठा है
मेरी निगाहों का नूर जो गुम |
तुम्हारी नज़र की नवाज़िश है ये भी
कि नश्तर चुभोते हौले ज़रा तुम |
सितारों की महफ़िल में चाँद दीवाना
तुम्हारी हँसी से हर मौसम तराना,
तुम्हारे सुरों की सिफारिश है ये भी
हर गीत तो बुनते हैं तुम पर ही हम |
- कृतांत मिश्रा
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