• Published : 30 Sep, 2015
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फ़िज़ाएं भी बदलें तुम्हारे इशारे

घटाओं की स्याही का ख़त हो तुम |

 

बेमानी इन ज़ुल्फ़ों की साजिश है ये भी

कि रातें समेटे बैठे हो यूँ तुम |

 

गहरे इस काजल में छिप के तो बैठा है

मेरी निगाहों का नूर जो गुम |

 

तुम्हारी नज़र की नवाज़िश है ये भी

कि नश्तर चुभोते हौले ज़रा तुम |

 

सितारों की महफ़िल में चाँद दीवाना

तुम्हारी हँसी से हर मौसम तराना,

 

तुम्हारे सुरों की सिफारिश है ये भी

हर गीत तो बुनते हैं तुम पर ही हम |

 

- कृतांत मिश्रा

 

About the Author

Kritant Mishra

Joined: 16 Aug, 2015 | Location: , India

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Tum - A Poem
Published on: 30 Sep, 2015

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