
तेरी ही सियासत चलती है ज़हन पर तु रूके तो रूक ता है फलक पाने को तरसे तेरी ही झलक ..! ख़ानाबदोश बदरी को देखंु ...! तो ... बुंद बरश जाती है नयन पर तेरी ही सियासत चलती है ज़हन पर देख .... जमीं भी तु क़ुदरत भी तु सरगम भी तु हरकत भी तु दुर कही .. गुम है ..होश मेरा नज़दीक़ कही ... लिपटी भी तु ..! लापता हुँ कही एक ज़माने से ... छुप कर निकलता हुँ बहाने से .....! वही रहता हुँ, खोने से डरता हुँ तेरा हसीन रौब सहन कर ..! तेरी ही सियासत चलती है ज़हन पर..!
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