मोह में रीता
रीता रीता भीत गया
कितना जीवन
मोह से उत्पन्न
हुए अंहकार के स्तंभ
नींद उड़ी चैन गया
उड़े हवा में ये स्तंभ
मन ने तब भी किया
क्या कोई प्रबंध
जिनको माना मेरा मेरा
उनका मात्र तू था
लाने का ज़रिया
उठ अब जाग
कर नियति
के हवाले ये व्यापार
है हम सब एक
एक का ही विस्तार
हास विलास बहुत हुआ
बहुत हुआ ये परिहास
भौर होने को है
अवसर खोने को है
चल समय से पार
उस द्वार
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