ममता का जन्म
एक चीख़ मारी कोख ने,
लहु बहा शरीर से ।
दर्द सहा हडि्डयों ने,
तब हुअा ममता का जन्म ॥
एक चीख़ मारी कोख ने,
लहु बहा शरीर से ।
दर्द सहा हडि्डयों ने,
तब हुअा ममता का जन्म ॥
जब उस जान को छुआ मैंने,
जाने कैेसे ममता बही छाती से ।
लगाया उसे तन से जब,
तब हुअा ममता का जन्म ॥
नींद आँखों से ओझल हुईं,
सूजन हर जगह कहीं ।
फिर भी उसके रोने पे बैचेन हों उठे मन,
तब हुअा ममता का जन्म ॥
सबसे छिपाकर रखा मैंने,
धूप छाँव से बचाकर रखा मैंने ।
पर जब हर समय निहारा मेैंने,
तब हुअा ममता का जन्म ॥
घबरा जाती हूँ मैं ,
सबका सुनती हूँ मैं ।
पर हमेशा उसीसे सीखाती हूँ मैं,
तब हुआ ममता का जन्म ॥
चाहे दिखे किसी के जैसा भी,
रहेगा अक्स मेरा ही ।
और जब करेगा कल नाम रोशन,
तब हुआ ममता का जन्म ॥
हर साल तेरा जन्मदिन मनाएँ ,
मेरी झुर्रियाँ तेरी बलाएं लेजाएं ।
मरकर भी मेरी ममता हमेशा रहे तेरे संग,
तब हुआ ममता का जन्म ॥
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