• Published : 26 Aug, 2015
  • Comments : 1
  • Rating : 0

 

कल रात बहुत ठंड थी
सफेद चादर ओढ़ा कर उसे
उस में साँसें फूँक फूँक कर
थक गया था मैं

चाँद की एक किरण
उसके माथे की सिलवटें
उतार रही थी

उसकी खामोशी का शोर
बस मेरी साँसों की सदा से टूट रहा था
कितने सवाल पूछ रहा था मैं
पर वो पत्थर सी खामोश रही
मेरे चेहरे पर ना जाने
कौनसी शिकन ढूँढ रही थी

उसके पैरों के पास रखे दिए में
यादें जलाने की बहुत कोशिश की
पर सिले हुए इन क़िस्सों से
लौ फड़फ़डाकर मुँह मोड़ रही थी

उसका हाथ उठाया तो लगा
जैसे बर्फ को थाम लिया
और उसके नीले होंठ
बार बार यही कह रहे थे
की कल रात बहुत ठंड थी

About the Author

Ashay Abbhi

Joined: 29 Apr, 2014 | Location: , India

...

Share
Average user rating

0


Please login or register to rate the story
Total Vote(s)

0

Total Reads

1410

Recent Publication
The Reluctant Dreamweaver
Published on:
The Perfect Mess
Published on: 01 Oct, 2015
Kal Raat Bahut Thand Thi
Published on: 26 Aug, 2015
The Wait
Published on: 10 Jun, 2014

Leave Comments

Please Login or Register to post comments

Comments