एक दिन रास्तों पर चलते हुए;
मंजिले गुम जाएँगी
उन रास्तों की तन्हाइयों में
तुम मिल जाओ तो कैसा हो
मेरे हाथ के महकते गुलाब
तेरे इंतज़ार में सूख जाए तो
उन पंखुड़ियों की सुगंध में
तुम मिल जाओ तो कैसा हो
तुझे याद करते करते
सुबह से शाम हो जाये
तो रात की ख़ामोशी में
तुम मिल जाओ तो कैसा हो
यूँ तो अपना मिलने का
सिर्फ इस जन्म का वादा था
मौत की दहलीज़ पर भी
तुम मिल जाओ तो कैसा हो
हाथ पकड़कर साथ चलते हुए
कोई देख न ले
चल अँधेरे में कहीं छुपकर चले
हो चांदनी ही बस गवाह
अपने सफ़र की
आ बैठ सपनो के रथ में
कहीं ज़िन्दगी के पार चले
कुछ प्यार मेरी झोली में हो
कुछ प्यार तेरे हो आँचल में
सफ़र बहुत है लम्बा
चल चले ज्यों बयार चले
वक़्त के दरमियान भी गर
प्यार हो जाए तो कैसा हो
फासलों को तोड़कर दिल
मिल जाए तो कैसा हो
इस कदर मिले कि मिल कर
एक हो जाए तो कैसा हो
एक कब्र पर सर रखके
हम सो जाए तो कैसा हो
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