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इस शहर की सहर में

थम जाती हैं घड़ियाँ

सागर की लहर सी

ग़ुम जाती हैं कड़ियाँ

 

पलट कर देखा तो ,

उन गली नुक्कड़ों में

कई यादें बिखरी थीं

मद्धिम धूप सी

कई कहानियाँ निखरी थीं

 

उन सड़कों पर मेले

अब भी हैं गुलमोहर के

झुलसाती घाम में अब भी

हंसी-ठिठोली के सोहर हैं

 

पगडंडियाँ थीं साड़ी टेढ़ी-मेढ़ी ,

पर जातीं तब भी आगे थीं,

आकाँक्षाओं का  वह ताना-बाना

बुना था आशाओं के धागे से

 

भाग-दौड़ की ज़िन्दगी में

साँझ शीतल, ये खो रही है

अतरंगी होड़ में अभिलाषाएँ

देखो, क्या बो रही हैं

 

भेदभाव के ज़हर में

जकड़ रही हैं बेड़ियाँ

पर थोड़ा तू ठहर,

रम जाने दे आदर की लड़ियाँ

क्योंकि,

इस शहर की सहर में

अब भी,

थम जातीं हैं ये घड़ियाँ

About the Author

Sumita Shahi

Joined: 22 Mar, 2023 | Location: Gurgaon, India

A simple person who believes in hope and humanity. Open to different perspectives and love the art of conversation and debate....

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Paradox
Published on: 08 May, 2023
इस शहर की सहर में
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