• Published : 07 Oct, 2015
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उसके साथ बीती उम्र का चेहरा

कितनी खूबसूरती से उतरता है

मेरी पलकों की नमी में,

आहिस्ता-आहिस्ता मेरी नज़मों की उँगली पकड़ कर

कई क़िस्से जब उसकी यादों के सिरहाने

सिसकने लगते हैं तब 

सिगरेट के धुंए को तकिया बना कर

 मैं टेक देता हूँ अपनी पेशानी पर पड़े सारे बल

जो अक्सर साथ बीते 

लम्हों की दुहाई में चीख पड़ते हैं...

नतीजतन हम दोनों के रिश्तों की चिता पर 

मैं रोज़ फूँकता हूँ अपना अस्तित्व

उस लम्हे से मोक्ष की नाकाम उम्मीद में 

कि जबउसने कहा था...

"मुझे माफ़ कर दो,

मगर...

 

About the Author

Dimple Singh Chaudhary

Joined: 10 Sep, 2015 | Location: , India

Freelance writer...

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