• Published : 30 Sep, 2015
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फर्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए

तेरे कहाँ से हों कि हम अपने नहीं हुए

 

कुछ क़र्ज़ अपनी ज़ात के हो भी गए वुसूल

जैसे तेरे सुपुर्द थे वैसे नहीं हुए

 

अच्छा हुआ कि हमको मरज़ ला-दवा मिला

अच्छा नहीं हुआ कि हम अच्छे नहीं हुए

 

उसके बदन का मोड़ बहुत ख़ुशगवार है

हम भी सफ़र में उम्र से ठहरे नहीं हुए

 

इक रोज़ खेल खेल में हम उसके हो गए

और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए

 

हम आके तेरी बज़्म में बेशक हुए ज़लील

जितने गुनाहगार थे उतने नहीं हुए

 

इस बार जंग उससे राऊनत की थी सो हम

अपनी अना के हो गए उसके नहीं हुए

About the Author

Vipul Kumar

Joined: 13 Aug, 2015 | Location: , India

Yak alif besh nahiN saiqal-e-aaina hanozchaak karta huN maiN jabse k gariibaaN samjha Ghalib...

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Farz-e-Supurdagi Mein Taqaaze Nahin Hue
Published on: 30 Sep, 2015

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