आज एक अरसे बाद, चाँद से मुलाक़ात हुई।
हाँ, कुछ पल की सही, मगर मुलाक़ात कुछ ख़ास सी हुई।
हर बार की तरह, तारों की मौजूदगी साथ रही,
ख़फ़ा - ख़फ़ा सा था वहाँ हर कोई,
आख़िर मुलाक़ात इतने दिनों बाद जो हुई।
वक़्त की इस रफ़्तार में, ज़िंदगी कहीं खो सी गई,
हँसी और मुस्कान के बीच, ख़ुशी लापता हो गई।
ख़ामोश तो मैं भी थी यहाँ, वहाँ चाँद भी,
इन दूरियों और ख़ामोशियों के दरमियाँ बातें चलती रहीं।
मेरी बातों को अधूरा छोड़, चाँद बादलों में छुप गया,
नाराज़गी जायज़ थी उसकी, जो कि ज़ाहिर हुई।
फिर चुपके से झाँक कर वहाँ से, मुझे तसल्ली दी।
वक़्त तो वक़्त है, चलता रहेगा और ये ज़िंदगी भी,
वक़्त से थोड़ा वक़्त माँग लेना, हम राह देखते रहते हैं, इस मुलाक़ात की।
वादा है मेरा, ये मुलाक़ातें चलती रहेंगीं,
बरसों पहले शुरू हुई थीं जो, बरसों तक रहेंगी।
इस वादे को लेकर मुझसे, चाँद बादलों से बाहर आया, चाँदनी बिखर गई।
और इत्तफ़ाक़न,एक टूटते तारे ने हमारी बात पक्की कर दी।
मुस्कुरा के फिर मैंने, जाने की इजाज़त उससे ली,
अलविदा कह कर, इस रात की ये मुलाक़ात यहाँ पूरी हुई।
हर मुलाक़ात से अफ़ज़ल ये मुलाक़ात हुई,
आज एक अरसे बाद, चाँद से मुलाक़ात हुई।
Comments