मै खुश थी सही थी बिलकुल आम सी थी ..
सब की तरह इस बीमारी से नादान सी थी ..
सुना था हज़ारो में कुछ चंद ही होते हैं
मै भी उन चंद में थी इस सच से अनजान सी थी ..
क्या कहु कहा से शुरू करू पता नहीं
कैसे कहूँ कहाँ तक कहूँ पता नहीं
बस एक कहानी सी है
ये बात तो एक अरसे की है कितने दिन पल और सालों का कहूँ पता नहीं ;
पता है, मैंने अपनी जवानी को जवानी में ही ढलते देखा है ,
मेरी उन नन्ही उंगलिओं से बनी दो छोटी को फिर अपनी शादी में फूलों से सजते देखा है,
और आज देख रही हूँ उन्ही बालों को गिरते हुए
जिन्हे माँ के हाथों से बनते और भाई के हाथों से बिगड़ते देखा है ;
ऐसा नहीं मई भूल गयी हसना,
हस्ती मै अब भी हूँ बस कुछ दिखाती नहीं ,
पर अंदर से मै खाली सी हूँ ,
वो बढ़ रहा है हर वक्त हर पल ,
मुझे कुछ कह रहा है जो बयान मै कर पाती नहीं ;
बीमारी बहुत थी ऐ खुद ! तुझे यही देनी थी मुझे ,
मरते बहुत हैं तुझे ये मौत ही देनी थी मुझे ,
मैंने लोगों के जनाज़े पर भीड़ को रो ते देखा है ,
मेरी मौत पर ही साड़ी आँखे सूखी कर देनी थी तुझे;
जानते हो ये ज़िन्दगी बहुत बदसूरत सी है,
मैंने खुद अपनी खूबसूरती को बदलते देखा है ,
हर दिन हर पल खुद को साँस लेकर भी मरते देखा है ,
मौत से पहले हर किसी की आँखों में मेरी मौत का मंज़र देखा है ;
नहीं जी सकती अब मै और ,
आज जारही हूँ सबसे दूर ,
इस दर्द और इस पीड़ा से दूर ,
सब आस पास है मेरे शायद खुश होजाए ,
मेरे मरने पर मेरा दर्द मिटा ये सोचकर
शायद खुश होजाएं ,
पर मुझे आज फिर सबको गले लगाना है,
एक आखिरी बार कुछ कह कर जाना है;
मुझे मरना नहीं अभी जीना बहुत था,
सबके साथ वक्त बिताना बहुत था ,
मुझे जाना नहीं है कोई रोक तो लो ,
मुझे गले लगा कर ये डर छीन तो लो,
रोना मत कोई मै कमजोर होजाऊंगी,
जाते जाते शायद ना जापाउंगी,
मैंने इस बीमारी के साथ ज़िन्दगी जी है इसी के साथ मरजाना है,
पर इस सफर को तो चलते ही जाना है ;
मुझे जलाते हुए कोई साथ में जलना नहीं
मै ज़िंदा हु तुम में ये बस मेरा दर्द मर रहा है मै नही;
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