
तुमसे मिली तो खुद को जाना
जिन रंगों से सजी हूँ उनको पहचाना
हर एक तिनके की पहचान कराई
उनसे जुडी एक तस्वीर बनाई
तस्वीर थी वो जैसे एक पहेली
सदियों से तनहा थी वो अकेली
समय की मार पड़ी तो धूल की आगोश में
समेटती गई खुदको वो किसी की आस में
कितने ही आए निहारने उसे
कितने ही आए निखारने उसे
कितने ही आए पाने उसे
पर कोई न आया अपनाने उसे
दूसरों की चाह में रंगते रंगते
अपने ही असल रंग भूल गई थी वो
दूसरों के अरमानों में ढलते ढलते
अपना ही वजूद खो बैठी थी वो
देखो! आज कई दिनों बाद
हुई है फिर एक दस्तक
धुन्द्लाया सा दिख रहा है एक चहरा
घने बालों से सजा, कुछ जुदा
कुछ लम्हे ही तो बीते थे
ज़रा सी धूल ही तो छंटी थी
फिर आया एक फरमान नीलामी का
पर फिर भी खुश हूँ मै
खुश हूँ के अपना पाई हूँ खुदको
भले कोई अपनाए, या न अपनाए
खुश हूँ के जी सकी हूँ तेरी आँखों में
अब मौत आए, या बे मौत ही मर जाएं
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